November 7, 2025 11:18 AM
हेमन्त ऋतुचर्या : बल, पोषण और रोग-प्रतिरोध का आयुर्वेदिक विधान
लेखक: वैद्य रीतेश मिश्र
संस्था: आयुरयोग रिसर्च फाउंडेशन, सिमराही (सुपौल), बिहार
9430687321
प्रकाशक: Manu Foundation India
प्रस्तावना
आयुर्वेद में प्रत्येक ऋतु के अनुसार आहार-विहार का विधान किया गया है। यदि ऋतु के विपरीत आचरण किया जाए तो दोषों का प्रकोप होता है और अनेक रोग उत्पन्न होते हैं —
“ऋतुविपर्यये दोषाः प्रकुप्यन्ति नान्यथा।”
(चरक संहिता, सूत्रस्थान 6/3)
शरद ऋतु के पश्चात आने वाली हेमन्त ऋतु (मार्गशीर्ष–पौष मास) स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस समय जठराग्नि (पाचन शक्ति) अत्यंत प्रबल रहती है, जिससे शरीर बल, उत्साह और पोषण प्राप्त करने में समर्थ होता है। किंतु यदि आहार-विहार असंतुलित हो जाए, तो यही अग्नि शरीर की धातुओं को क्षीण कर रोग उत्पन्न कर सकती है।
हेमन्त ऋतु की विशेषताएँ
तत्व विवरण
काल:- मार्गशीर्ष एवं पौष मास (मध्य नवंबर से मध्य जनवरी)
जलवायु ठंडी हवाएँ, कोहरा, लंबी रातें, अल्प दिन
शारीरिक प्रभाव जठराग्नि प्रबल, बल-संवर्धन, पोषण की अधिक आवश्यकता
“शीतोष्णसमवायेन बलं पुष्णाति मानवम्।”
(अष्टांग हृदय, सूत्रस्थान 3/6)
अर्थात शीत ऋतु (हेमन्त–शिशिर) मनुष्य के बल को पुष्ट करती है।
आहार नियम (Dietary Regimen)
हेमन्त ऋतु में पौष्टिक, स्निग्ध और उष्ण आहार को विशेष महत्व दिया गया है।
अनुशंसित आहार
दुग्ध, घी, मक्खन, तिल, गुड़
गेंहू, जौ, बाजरा, चावल
गाजर, मूली, पालक, सरसों का साग, लहसुन
मेवा: बादाम, अखरोट, काजू, किशमिश
मांस-रस, अन्न-रस, सूप
फल: आँवला, खजूर, अनार
रसायन: च्यवनप्राश, अश्वगंधा, शतावरी, विदारीकंद
“स्नेहयुक्तं महाशनं सेवनं बलवृद्ध्यर्थं हेमन्तेऽनुपलप्यते।”
(अष्टांग हृदय, सूत्रस्थान 3/7)
वर्ज्य आहार:-
अत्यधिक शुष्क, कड़वे, तीखे पदार्थ
उपवास या अत्यल्प भोजन
बासी, ठंडी या रेफ्रिजरेटेड वस्तुएँ
विहार नियम (Lifestyle Regimen):-
1. अभ्यंग (तेल मालिश): तिल या सरसों तेल से दैनिक मालिश करें।
2. स्नान: गुनगुने जल से स्नान करना हितकर है।
3. व्यायाम: सूर्य नमस्कार, योगासन, हल्की दौड़।
4. धूप सेवन: प्रातःकाल सूर्य की धूप में बैठना उत्तम।
5. वास: ऊष्ण स्थान में रहें, मोटे वस्त्र धारण करें।
रात्रिचर्या:-
शीघ्र निद्रा और पर्याप्त नींद।
ऊनी वस्त्रों का उपयोग।
ठंडी हवाओं और कोहरे से बचाव।
पंचकर्म और औषधियाँ:-
स्नेहपान शरीर को स्निग्धता प्रदान करता है।
अभ्यंग एवं स्वेदन शीत से बचाव और संधि-शूल में राहत।
रसायन चिकित्सा दीर्घायु और रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ाती है।
प्रमुख रसायन:
च्यवनप्राश — बलवर्धन व रोग प्रतिरोधकता
अश्वगंधा लेह्य — शक्ति संवर्धन
ब्रह्म रसायन — धातु पोषण व स्मरण शक्ति वृद्धि
संभावित रोग और सावधानियाँ
संभावित रोग
अस्थमा, ब्रॉन्काइटिस
खाँसी-जुकाम, फ्लू
गठिया, जोड़ों का दर्द
त्वचा की शुष्कता, एग्जिमा
हृदय रोग
सावधानियाँ:-
ठंडी वस्तुएँ, बासी भोजन वर्जित।
अत्यधिक शीत में बाहर न निकलें।
बच्चों व वृद्धों की विशेष देखभाल करें।
योग और प्राणायाम:-
सूर्य नमस्कार रक्तसंचार व ऊर्जा वृद्धि
त्रिकोणासन लचीलापन और पाचन सुधार
भुजंगासन, मंडूकासन शरीर में ऊष्णता और पाचन सुधार
प्राणायाम: भस्त्रिका, कपालभाति, अनुलोम-विलोम, उज्जायी श्वसन प्रणाली को मज़बूत करते हैं।
निष्कर्ष:-
हेमन्त ऋतु बलवर्धन, पोषण और रोग-प्रतिरोध की दृष्टि से सर्वोत्तम ऋतु है। इस समय व्यक्ति यदि पौष्टिक आहार, नियमित अभ्यंग, योग-व्यायाम और रसायन चिकित्सा का पालन करे, तो यह ऋतु दीर्घकालिक स्वास्थ्य और सुदृढ़ प्रतिरक्षा प्रदान करती है।